चरित्र (आचरण या चाल-चलन) *यहां आचरण का अर्थ है-सदगुणों का समुच्चय। जिस व्यक्ति के व्यवहार में सत्य, न्याय, प्रेम, मानवता, करुणा, दया, अहिंसा, त्याग आदि गुण एकत्र हो जाते हैं, वह चरित्रवान कहलाता है। इसके विपरीत, जिनमें ये गुण क्षीण होते हैं, या कमजोर होते है, वे पतित या चरित्रहीन कहलाते हैं।
चरित्र की रक्षा किसी अन्य धन की रक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है ।
जीवन में सच्ची सफलता पाने के लिए व्यक्ति का चरित्रवान होना जरूरी है , सच्ची सफलता से आशय एक ऐसे उद्देश्य की प्राप्ति से है , जो हमारे साथ-साथ समाज के लिए भी कल्याणकारी हो , जो शाश्वत हो और जिसकी प्राप्ति हमें हर प्रकार से संतुष्टि दे सके और जिसे पाने के बाद किसी अन्य चीज को पाने की ईच्छा न रहे , ऐसे लक्ष्य की प्राप्ति ही सच्ची सफलता कहलाती है ।
चरित्र का निर्माण जन्मजात गुणों और आदत से ढाले गए व्यवहार से मिलाकर होता है। जन्मजात गुण ईश्वर की देन है, परंतु आदतें अपने हाथ में होती है। गांधी जी का उदाहरण हमारे सामने है। वे प्रतिभा में अत्यंत सामान्य थे। परंतु उन्होंने सत्य, अहिंसा और न्यान के जो गुण अपने जीवन में ढाले, उसी के परिमाणस्वरुप उन्हें ऐसा उज्जवल चरित्र मिला जिससे सारे विश्व को प्रकाश प्राप्त हुआ।
यही कारण है कि चरित्र शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। यह सीखने और विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है। इसका उपयोग बच्चों के शिक्षण को इस तरीके से वर्णन करने के लिए किया जाता है जो उन्हें नैतिक, नागरिक, अच्छे, मज़ेदार, व्यवहार करने वाले, गैर-धमकाने वाले, स्वस्थ, महत्वपूर्ण, सफल, पारंपरिक, अनुपालन या सामाजिक स्वीकार्य प्राणियों।
सही कहा
ReplyDeleteTHANKS FOR THE CONTENT 💞
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